दिल के मकान में एक आंगन है। वो आंगन मैंने मैहर के नाम कर दिया। अरे! मैहर तो छोटी जगह है। इतना बड़ा आंगन क्यों दे दिया? एक छोटा सा कमरा काफ़ी था। मैं हँस पड़ी। मैहर का खुला, नीला आसमान, ये गेहूं और सरसों के खेत वो कमल के अंगिनत झील मैहर की त्रिकूटा पहाड़ी और उसपे बैठी शारदा माँ ये बाबा अलाउद्दीन का मकबरा और वो मैहर बैंड आर्ट इचोल में खड़ी छत्री और जगमगाती खपरैल कोठी तमसा के किनारे धूप सेकना और बोगनविलिया की लालिमा निहारना… तुम ही बताओ, इतना कुछ कैसे समाऊँ मैं एक छोटे से कमरे में?
प्रिया पारुल