बचपन में रोशनी बहुत जाती थी।
तब मां भैया और मुझे बालकनी में ले जाती थी।
कभी हम अंताक्षरी खेलते, तो कभी ’20 सवाल’।
और इन्हीं बातों में, गानो में,
बुन्देलखण्ड का जिक्र हो ही जाता था।
माँ महोबा का नाम लेती थी.
कहती थी, “हमारे पूर्वज वहीं से आये थे”
महोबा सुन के ही एक अपनापन लगता था।
और बुन्देलखण्ड की चर्चा गर्व से भर देती थी।
पर कभी जाना नहीं हो पाया.
लेकिन बुन्देलखण्ड दिल और दिमाग से निकला भी नहीं।
कई साल बाद,
मध्य प्रदेश घूमने का मन बना.
रिसर्च करना शुरू किया,
तो ओरछा का नाम सामने आया।
बुन्देलखण्ड, ओरछा, राजा छत्रसाल
ये शब्द तो कभी पराए लगे ही नहीं थे।
लेकिन अब खुद अनुभव करने की बारी थी।
तो बस फिर, सामान बांधा और निकल पड़े।
ओरछा का किला
और जहांगीर के लिए बनाया गया जहांगीर महल
रानी महल में दशावतार का भित्तिचित्र
और लक्ष्मी नारायण से नज़ारा
बेटवा के किनारे बैठे सूर्यास्त
और छतरियों के शिखर पर बैठे गिद्ध
चतुर्भुज मंदिर का खालीपन
और राम राजा को सैनिक सलामी
ये सब देखा, तो सोचा
इतनी सुन्दरता और इतनी विरासत
इतनी शान और इतना सम्मान
माँ, तुम रखो महोबा, ओरछा हुआ मेरा…
